A diwali like this
- Lead Kindness
- Apr 11, 2020
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चलो आज आप सभी को एक कहानी सुनातें है दीवाली के उन दिनों की बात है जब हर दुकान पर नई चमचमाती रोशनी का पहरा था, पटाखे, रंगोली, दीपक,मिठाईयां, पोस्टर्स आदि सभी चीजों का डेरा था। मै किसी काम से बाजार गई थी ..मेरे साथ मेरी पड़ोसन ज़ोया बेगम और उनका 5-6 वर्ष का बेटा अली भी था। ज़ोया बेगम राशन की दुकान से समान लेने लगी थी और मै दीवाली के लिए दीपक , पटाखे, रंगोली, पोस्टर्स लेने के लिए पास ही की एक दुकान पर गई थी। दीवाली के उन दिनों में बाज़ार सजा - सजा सा था हर तरफ , हर एक चीज मन को मोह लेने वाली थी। मैं दीवारों और घर को सजाने के लिए कुछ दीपक और पोस्टर्स ले ही रही थी कि तभी अली अपनी मां का हाथ झटके से छोड़कर मेरी ओर दौड़ा आ रहा था। वो मेरे पास आकर खड़ा हो गया ओर ना जाने किस दुनिया में खो गया । वो गणेश जी,लक्ष्मी जी के पोस्टर्स ने ना जाने उसपर कैसा जादू कर दिया था कि वो उन पोस्टर्स को लेने के लिए जिद करने लगा मैं उसे खरीद के देती उससे पहले ही ज़ोया बेगम का आगमन वहां हुआ, उन्होंने अपने बच्चे की ओर प्यार से देखा और बोला “अली ,बेटा अम्मी का हाथ छोड़कर कहां भाग रहे थे आप? ये अच्छी बात नहीं है, आप मेरे अच्छे बच्चे हो ना , दोबारा ऐसा मत करना” अली अपनी मां से बोला “ अम्मी मुझे भी पटाखे और ये फोटो लेनी है" ज़ोया बेगम ने एक नजर उन पोस्टर्स पर घुमाई जिनको लेने के लिए अली जिद कर रहा था। ज़ोया बेगम ने अली को बड़े प्यार से बोला “अली ,बेटा ये हमारे भगवान नहीं है और ना ही ये हमारा त्यौंहार है। चलिये हम ये सब नहीं खरीदेंगे।" अली की चेहरे पर उदासी सी छा गई जैसे उसका प्यारा सा ख्वाब एक पल में टूट गया हो। बच्चा रोने लगा अपनी अम्मी से वही सब लेने की ज़िद करने लगा, और तब भी ज़ोया बेगम अपने बच्चे को मजहब का पाठ पढ़ा रही थी। मै इस बात से हैरान थी कि कैसे एक मां अपने छोटे से बच्चे को जिसे मजहब का, सही - गलत का कोई ज्ञान नहीं था उसे मजहब का पाठ पढ़ा रही थी। अली के आंखो से गिरते हुए मोती रूपी आंसूओं ने जैसे मेरे हृदय को पिघला सा दिया था लेकिन… लेकिन आश्चर्य की बात तो ये थी कि ज़ोया बेगम के चेहरे पर कोई हलचल नहीं थी.. वे अभी भी उस बच्चे को समझाने में लगी हुई थी जबकि समझने की जरूरत उनको थी कि भगवान का कब से कोई मजहब होने लगा है?, कब से उनका मजहब उनके बच्चे की खुशी से बढ़कर होने लगा है?, क्या उनका भगवान उनके बच्चे को रोता देख खुश हो पायेगा? कुछ ऐसे ही प्रश्न मेरे दिमाग में उठ रहे थे । इससे पहले कि मै इन सवालों का उत्तर खोज पाती, ज़ोया बेगम को समझा पाती , वे अली का हाथ पकड़कर उसे घर ले गई । इसी के साथ एक बार फिर इस धर्म, मजहब और भगवान के खेल ने एक बच्चे से उसकी खुशी छीन ली, एक बार फिर एक बच्चा इस धर्म , मजहब, और भगवान के खेल में उलझ गया।
Written by
Nikita Prajapati.
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