दोस्तों ये कहानी है रामपुर नामक एक छोटे से गांव की जहां सुमित्रा अपने माता - पिता (गोपालदास और गौरा देवी) के साथ रहती हैं। गोपालदास समाजसेवक थे तो चाहते थे कि उनकी बेटी एक अच्छी पढ़ी लिखी संस्कारी लड़की बने। सुमित्रा की मां एक कम पढ़ी लिखी साधारण स्त्री थी। सुमित्रा कॉलेज जाती थी पढ़ने में काफी होशियार भी थी। उसकी सुन्दरता के चर्चे ना केवल उसके घर में थे बल्कि पूरे कॉलेज में थे। सुमित्रा एक मशहूर अभिनेत्री बनना चाहती थी इसलिए उसने पढ़ाई के साथ ही अभिनय सीखना शुरू कर दिया। लेकिन उसके पिता चाहते थे कि वो एक बड़ी अफसर बने सुमित्रा इस बात को जानती थी कि उसके पापा उसे अभिनय में अपना भविष्य नहीं बनाने देंगे यही कारण था कि उसने ये बात अपने घर वालों छुपाई। सुमित्रा दिन में कॉलेज की पढ़ाई करती व रात में अभिनय का प्रयास करती थी। कुछ सालों तक सब ऐसे ही चलता रहा।आखिरकार अब वो दिन आ ही गया जब सुमित्रा कि कॉलेज कि शिक्षा खत्म हुई । गोपालदास आएऔर सुमित्रा के पास बैठे और बोले - सुमित्रा बेटा अब तुम्हारे कॉलेज कि शिक्षा भी पूरी हुई तुम्हारी शादीके लिए अच्छे अच्छे रिश्ते आने लगे हैं मै चाहता हूं कि पहले तुम्हारी सगाई कर दूं नहीं तो समाज तरहतरह कि बातें बनाने लगेगा। कहने लगेगा कैसे बाप है बेटी की शादी की उम्र हो गई अभी भी घर में बिठारखा है। बस एक बार सगाई हो जाएं फिर तुम अपनी परीक्षा की तैयारी शुरू कर देना। ये सभी बातें सुमित्रा चुपचाप सुन रही थी थोड़ी देर मौन रहने के पश्चात् सुमित्रा बोली - पिता जी मै एक अभिनेत्री बनना चाहती हूं और अभी सगाई करने में कोई रुचि नहीं रखती हूं मुझे पहले मेरा भविष्य बनाना है। ये सभी बातें सुनकर गोपालदास क्रोधित हो पड़े। अपने क्रोधवश उन्होंने सुमित्रा को दो थप्पड़ लगाए और बोले सुमित्रा मेरी समाज में बहुत इज्जत है मुझे अपनी इज्जत बहुत प्यारी है। मै नहीं चाहता मेरी बेटी छोटे छोटे कपड़े पहनकर इधर उधर अभिनय करती फिरे। तू समाज में मेरी नाक कटवाना चाहती हैं मै ये कभी नहीं होने दूंगा। गौरा सुनती हो इसे बोलो घर में बैठे कल से इसका बाहर आना - जाना सब बंद। इसे बोलो घर पर बैठकर घर का काम करना सीखे। ये सुनकर सुमित्रा रोने लगी और रोते हुए बोली लेकिन पिता जी…. इतने में गोपालदास ने बोला लेकिन वेकिन कुछ नहीं बस अब यही मेरा फैसला है मै अब इस बारे में बात नहीं करना चाहता। सुमित्रा रोते हुए अपने कमरे में गई और कमरे के एक किनारे में बैठकर खुदसे सवाल करने लगी ।
क्यों समाज उनको उनके सपनों से दूर करता है? क्यों लोग समाज क्या कहेगा इस बात से डरते है? क्यों लोग समाज की परवाह अपने बच्चों से ज्यादा करतें है? कुछ ऐसे सवाल उसके मन में उठ रहे थे जिनका जवाब वो जानना चाहती थी। सुमित्रा निराश हो चुकी थी मानो जिस सूर्य के उदय होने का इंतजार वो के रही थी अब वो कभी उदय ही नहीं होगा। घर का माहौल बेरंग सा हो गया था सुमित्रा से घर में कोई बोलता नहीं था सारे दिन घर में शांति बनी रहती थी। फिर एक दिन गोपालदास ने गौरा को कहा कि सुमित्रा के लिए एक बहुत अच्छा रिश्ता मिला है आज लडके वाले उसे देखने आने वाले है तो सुमित्रा को अच्छे से तैयार करके ले आना। सुमित्रा ने दरवाजे से ये बात सुन ली और बहुत दुखी हुई। उसके चेहरे की उदासी बिल्कुल ऐसी लग रही थी मानो एक हंसता - खेलता फूल मुरझा गया हो। सुमित्रा को लग रहा था कि अब कभी वह अपने सपने को पूरा नहीं कर पाएगी और यही सोच सोचकर वो दुखी हुए जा रही थी। कुछ देर बाद गौरा सुमित्रा के पास जाती हैं और बोलती है बेटा सुमित्रा….इतने में सुमित्रा बोलती है कि मां आपके यहां आने का कारण मुझे पता है आप यही कहना चाहती है ना कि मुझे देखने लडके वाले आ रहे है। मां ने बोला बेटा ये दिन तो हर लड़की की ज़िंदगी में आता है कभी ना कभी तो शादी होती ही है और वैसे भी अगर अभी तुम्हारी शादी नहीं करेगें तो ये समाज क्या कहेगा जरूर लड़की में ही कोई कमी है। इसलिए बेटा हमारी इज्जत रखना । जल्दी से तैयार होकर नीचे आ जाना। लडके वाले आते ही होंगे। एक बात और लड़का भी साथ आ रहा है। उसका नाम जानना चाहेगी, उसका नाम रोहित है चल मै जाती हूं अब। सुमित्रा दुखी मन से तैयार होकर बैठ गई। कुछ देर बाद लडके वाले आ गए। मां गौरा सुमित्रा को लेकर आती हैं। रोहित को सुमित्रा एक नजर में पसंद सा जाती हैं।
रोहित अपनी मां से बोलता है कि मुझे स्वयं सुमित्रा से थोड़ी देर बात करनी है। तो रोहित कि मां ने गौरा से कहा कि क्यों ना लड़की ओर लडके को थोड़ी देर बात करने का मौका दिया जाए। तो गौरा ने उनको बोला ठीक है में इन दोनों को कमरे में ले जाती हूं। ये कहकर गौरा रोहित और सुमित्रा को एक कमरे में के जाती हैं। वह रोहित और सुमित्रा के बीच वार्तालाप होने लगता है और बातों ही बातों में रोहित सुमित्रा से बोलता है तुम इतनी खूबसूरत हो इतना अच्छा अभिनय करती हो तो कभी अभिनेत्री बनने का प्रयत्न क्यों नहीं किया। सुमित्रा ने बोला कि बनना चाहती थी लेकिन मेरे पापा को समाज का डर था कि समाज क्या कहेगा? इसलिए पापा ने मना कर दिया। थोड़ी देर बाद दोनों नीचे जातें है दोनों का रिश्ता पक्का हो जाता है तब रोहित ने गोपालदास से बोला कि सुमित्रा अभिनेत्री बनना चाहती थी आपने इसे क्यों रोका? गोपालदास ने बोला ये हमारे समाज के विरूद्ध है समाज कभी ऐसी स्त्रियों को सम्मान नहीं देता।
तब रोहित ने बोला पापा समाज हम सब से मिलकर बनता है , हम समाज को बनातें है ना कि ये समाज हमें। अगर हम बदलाव लाना चाहतें है तो किसी एक को तो पहल करनी पड़ेगी ना। और वैसे भी चार लोग क्या कहेंगे इस बात से कोई फर्क नहीं पड़ता फर्क इस बात से पड़ता है कि सुमित्रा को किस चीज से खुशी मिलती है लोगों का क्या है वो तो हर किसी कि बातें बनाते है जो सफल है उसकी भी जो असफल है उसकी भी। रोहित के ये शब्द सुनकर सुमित्रा आश्चर्यचकित रह गई उसे ज़रा भी विश्वास नहीं था कि उसकी ज़िंदगी में कोई ऐसा आया है जो उसके सपनों को पंख देगा। अब सुमित्रा के मन में नई उम्मीद जगने लगी थी।
गोपालदास के उपर रोहित की बातों का गहरा प्रभाव पड़ा। रोहित की बातों ने गोपालदास कि सोच को बदल दिया। और तभी गोपालदास ने एक फैसला लिया । गोपालदास ने सुमित्रा से कहा मुझे माफ़ कर दे बेटा मै तेरी ख़ुशी की नहीं समझ पाया। अब आज से तू एक अभिनेत्री बनने के लिए मेहनत शुरू कर दे तेरे साथ मैं हूं रोहित है। ये सुनकर सुमित्रा के चेहरे पर खुशियों कि बाहर आ गई। जल्द ही उसकी शादी रोहित से हो गई और शादी के कुछ सालों बाद ही रोहित कि मदद से सुमित्रा कि गिनती सफल अभिनेत्रियों में होने लगी। दोस्तों इस कहानी से हमें ये शिक्षा मिलती हैं कि हमें समाज क्या कहेगा, लोग क्या कहेंगे, इन बातों को नजरंदाज करके अपने अंदर गुणों कि विकसित करना चाहिए। अगर हमारे अन्दर गुण हैं तो एक ना एक दिन किसी ना किसी तरीके से हम सफल हो है जातें हैं।
Written by:Nikita Prajapati
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