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Four boys


चार लड़के

*यह कहानी सत्य घटना पर आधारित है*

*इंसानियत छीप सकती है, लेकिन मर नहीं सकती*

कोरोना जैसी महामारी से पूरी दुनिया एक योद्धा की तरह लड़ रही है और न जाने कितने परिवार वालो ने अपनो को खो दिया इस युद्ध में। और तो और कितने सदस्य अपने परिवार वालो के खातिर भूख की तलाश निकाल पड़े परदेस।


वैसे ही गुजरात राज्य के छोटे से शहर जामनगर की ओर लेकर चलती हूं आपको जहा पर उत्तर प्रदेश राज्य के चार युवा अपना घर – भार छोड़कर शहर आए है। आंखो में अपने परिवार के लिए दो वक़्त की रोटी कमाकर देने की आस लेकर लेकिन जैसे कि सब जानते है कि लॉक डाउन की वजह से कोई रोजगारी नहीं है।


मगर कोई भूखा पेट केसे सो सकता है, अभी इंसानियत बाकी है वो मरी नहीं है , ज़िंदा है।

हमारे कॉलोनी में एक जिम है जिसका नाम विजय हैल्थ सेंटर है। इस जिम के हर सदस्य ने मिलकर ठाना है कि कोई गरीब, टैक्सी चालक और जो रोज़ कमाने वाले व्यक्तियों को मुफ्त खाना खिलाया जाएगा और राशन भी दिया जाएगा। उनको जब हमारी ज़रूरत होगी, जिम के सदस्य उनके साथ होंगे चाहे दिन हो या रात साथ होंगे।


लॉकडाउन के तीसरे दिन के रात में एक लड़के का कॉल आता है और वो रोते रोते बताता है कि उसने और उसके तीन साथियों ने भी खाना नहीं खाया। हमारे जिम के ऑनर उन लड़कों के लिए रात के १० बजे ही ताजा खाना बनवाया और उनके खाने के पैकेट दिए गए और तब से और आने वाले दिनों जब तक लॉकडॉउन रहेगा तब तक उन चारो युवाओं को दो वक़्त का खाना दिया जाएगा। दोस्तो आपको पता है उन चारो युवाओं को रात ११:३० बजे खाना देने गए उन के मुख से सबसे पहले यह शब्द निकल “अपने हमारी मदद की उसके लिए आपका बहुत शुक्रिया , और आप सब को हमारी उमर लग जाए, बहुत कम लोग होते है जो ऐसे नेक काम करते है।“ दोस्तो जब यह मैंने सुना तब मेरी आंखो ने खुशी से आंसू झलका दिए क्यूंकि इन शब्दों की गिनती बहुत कम है लेकिन शब्दों के जज़्बात बहुत है। यह कहानी मुझे कैसे पता चली? आप यही सोच रहे है ना? तो जवाब यह है कि उस जिम के सदस्य में से एक सदस्य मेरे पिताजी भी है।


मुझे आशा है दोस्तो की आप जब यह कहानी पड़ेंगे तो शायद इंसानियत को दुबारा आने की ज़रूरत नहीं पड़ेगी क्योंकि इंसानियत कभी जाती नहीं है और जाती है तो वो इंसानियत नहीं होती है


Written By – Tomar Arushi

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